कविता
आज गैरो को छोड़ खुद के लिए अर्ज किया है.....
लहजे को मेरे नायाब सा नगमा दिया है......
कुछ खास लम्हो को सुकून के संदूको मे दर्ज किया है.....
हम बड़ी नजाकत से मुस्कुराए कभी.....
तो कभी यारो की महफिल से अपनी रूहानियत के लिए कर्ज लिया है ।।।
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