Fri , Mar 21 2025
दोस्तों हम एक सीरीज शुरू करने वाले हैं इस सीरीज में हम भारत के उन व्यक्तियों के बारे में बात करेंगे जिन्होंने आधुनिक भारत को बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है हम सीरीज इसलिए शुरू कर रहे हैं ताकि इन महान व्यक्तियों के जीवन से हमें कुछ प्रेरणा मिल सके|
1.भारत के महान व्यक्तित्व - सरदार वल्लभभाई पटेल
सरदार पटेल का व्यक्तित्व शांत, दृढ़ और आत्मविश्वास से भरा हुआ था। वे तेजस्वी नेत्रों वाले, स्पष्ट बोलने वाले, लेकिन कम शब्दों में अपनी बात कहने वाले व्यक्ति थे। उनका स्वभाव विनोदी था और वे कठिन परिस्थितियों में भी संयम बनाए रखते थे।
भारत के ताजा परिप्रेक्ष्य पर गौर किया जाए तो देश का लगभग आधा भाग साम्प्रदायिक एवं विघटनकारी राष्ट्रद्रोहियों की चपेट में फँसा दृष्टिगोचर होता है, ऐसी संकट की घड़ी में सरदार है बल्लभ भाई पटेल की स्मृति हो उठना स्वाभाविक है. ज्ञातव्य है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के सामने ज्वलन्त प्रश्न था कि छोटी-बड़ी 562 रियासतों को भारतीय संघ में कैसे समाहित किया जाए ?
तब इस जटिल कार्य को जिस महापुरुष ने निहायत सादगी तथा शालीनता से सुलझाया-वे थे आधुनिक राष्ट्र निर्माता लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल पटेल का भरा-पूरा सुडौल शरीर उनकी उग्र प्रकृति का परिचायक था, पर वे अन्दर से बर्फ के समान शान्त व निर्मल थे. उनकी तेजस्वी आँखों में मनुष्य की अंतवृत्ति को चीन्हने की अनुपम शक्ति थी हास्य-विनोदी प्रकृति के होते हुए भी वे स्पष्ट वक्ता थे, पर बोलते कम थे. उनका कार्य करने में विश्वास था. संयम, सादगी, सहिष्णुता, सत्य-साहस और दृढ़ता के प्रतीक पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात में हुआ था|
प्रारम्भिक शिक्षा काल में ही उन्होंने एक ऐसे अध्यापक के विरूद्ध आन्दोलन खड़ाकर उन्हें सही मार्ग दिखाया, जो अपने ही व्यापारिक संस्थान से पुस्तकें क्रय करने के लिए छात्रों को बाध्य करते थे |
मैट्रिक करने से पूर्व ही बड़ौदा स्कूल में ऐसे ही किसी प्रसंग पर एक शिक्षक से उनका झगड़ा हो गया तो उन्हें स्कूल से बाहर निकाल दिया गया. ऐसी ही सरदारगीरी के कारण 22 वर्ष की उम्र में वे मैट्रिक परीक्षा पास कर पाए और वकालत के पेशे में जुट गए|
1908 में वे विलायत की अन्तरिम परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर बैरिस्टर बन गए. फौजदारी वकालत में उन्होंने खूब यश और धाक जमाई, गुजरात क्लब के आमन्त्रण पर जब महात्मा गांधी व्याख्यान देने पधारे तो पटेल ने गांधी की उपेक्षा करते हुए टिप्पणी की थी- 'मुझे इन चन्द पढ़े-लिखे राष्ट्रवादियों से सख्त नफरत है यह लोग अर्जीनवीसी करके महान शक्तिशाली ब्रिटिश सामाज्य को यहाँ से उखाड़ फेंकेंगे, इसमें मुझे बहुत सन्देह है यह व्याख्यान-आख्यान निरा बकवास है. किन्तु चम्पारन जिले में सत्याग्रह की सफलता देख पटेल की आँखें खुल गईं वे गांधी की आन्दोलन पद्धति के प्रशंसक व भक्त बन गए गुजरात के बोरसद ताल्लुके में देवर बम्बा डाकू का खौफनाक आतंक था पुलिस और प्रशासन निष्क्रिय हो चुके थे तब पटेल द्वारा 200 स्वयंसेवकों को लेकर किया गया सत्याग्रह देख देवर बम्बा को नौ दो ग्यारह होना पड़ा. बोरसद में प्लेग का प्रकोप होने पर प्लेग निवारण हेतु पटेल बोरसद में कई महीने डटे रहे|
सितम्बर, 1946 में जब नेहरू जी की अस्थाई राष्ट्रीय सरकार बनी तो सरदार पटेल को गृहमंत्री नियुक्त किया गया अत्यधिक दूरदर्शी होने के कारण भारत के विभाजन के पक्ष में पटेल का स्पष्ट मत था कि जहरवाद फैलने से पूर्व गले-सडे अग को ऑपरेशन कर कटवा देना चाहिए नवम्बर 1947 में संविधान परिषद् की बैठक में उन्होंने अपने इस कथन को स्पष्ट किया- मैंने विभाजन को अन्तिम उपाय के रूप में तब स्वीकार किया था, जब सम्पूर्ण भारत के हमारे हाथ से निकल जाने की सम्भावना हो गई थी मैंने यह भी शर्त रखी थी कि देशी राज्यों के सम्बन्ध में ब्रिटेन हस्तक्षेप नहीं करेगा इस समस्या को हम सुलझाएंगे
और निश्चय ही देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को पटेल ने बिना खून-खराबी के बड़ी खूबी से हल किया देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, बहावलपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करने में सरदार को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा का सामना करना पड़ा. हैदराबाद के निजाम ने राज्य की जनसंख्या में 85 प्रतिशत हिन्दुओं को तीन भाषाओं-तेलगू, मराठी, कन्नड़ में विभक्त करके भेद-नीति से पूरा लाभ उठा रखा था हालांकि हैदराबाद उस समय तीसरा बड़ा शहर माना जाता था, परन्तु निजाम ने राज्य की जागृति को निरस्त करने के लिए ऐसी कूटनीतियाँ अपना रखी थीं कि दिल्ली-मद्रास तथा बम्बई-मदास के लिए रेलमार्ग निर्धारित किए जाने पर हैदराबाद को दूर ही रखा, जिससे हैदराबाद में राष्ट्रीय आन्दोलन की लहर न प्रवेश कर जाए. अतः महात्मा गांधी द्वारा लाख प्रयास करने पर भी केवल दो बार हैदराबाद जा सके, जबकि वे नगर-नगर, गाँव-गाँव जाकर बार-बार जनता को जागृत कर रहे थे निजाम ने शिक्षा के प्रसार में भी उर्दू को माध्यम बनाकर धूर्तता की थी. उसका स्पष्ट आशय था कि उर्दू देशी भाषा को प्राथमिकता देकर अंग्रेजी के बायकाट करने से उसे विशेष श्रेय तो प्राप्त होगा ही और दूसरे उर्दू के माध्यम होने से अल्पसंख्यक मुसलमान अधिक परिमाण में शिक्षित होंगे भारत संघ में विलय न होने के उद्देश्य से उसने चुपचाप हैदराबाद को 10 लाख रुपए में पाकिस्तान को बैचने का दुष्चक्र रच लिया था. लेकिन इस साजिश की भनक पटेल को मिल गई तब उन्होंने निजाम की दुर्गति की और हैदराबाद को भारत में मिला लिया.
जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व कतई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा नेहरू नहीं माने बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हजार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया.
सरदार पटेल के ऐतिहासिके कार्यों में सोमनाथ मन्दिर का पुनर्निर्माण, गांधी स्मारक निधि की स्थापना, कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा कितनी बलवती थी. इसका एक उद्धरण ही काफी है एक बार जब वे भारतीय युद्धपोत द्वारा बम्बई से बाहर यात्रा पर थे तो गोआ के निकट पहुँचने पर उन्होंने कमांडिंग अफसर से पूछा- इस युद्धपोत पर तुम्हारे पास कितने सैनिक हैं जब कप्तान ने उनकी संख्या 800 बताई तो पटेल ने फिर पूछा-'क्या वह गोआ पर अधिकार करने के लिए पर्याप्त हैं? सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले- अच्छा चलो जब तक हम यहाँ हैं, गोआ पर अधिकार कर लो. किंकर्तव्यविमूढ़ कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की विनती की तब पटेल चौंके फिर कुछ सोच कर बोले-ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा जवाहर लाल इस पर आपत्ति करेंगे' सरदार पटेल और नेहरू के विचारों में काफी मतभेद था, फिर भी गाधी से वचनबद्ध होने के कारण वे नेहरू को सदैव सहयोग देते रहे गम्भीर बातों को भी वे विनोद से कह देते थे कश्मीर की समस्या को लेकर उन्होंने कहा था-सब जगह तो मेरा वश चल सकता है, पर जवाहर लाल की ससुराल में मेरा वश नहीं चलेगा उनका यह कथन भी कितना सटीक था- 'भारत में केवल एक ही व्यक्ति राष्ट्रीय मुसलमान है-जवाहर लाल नेहरू शेष सब साम्प्रदायिक मुसलमान हैं|
यदि नेहरू को भारत की उत्कृष्ट प्रेरणा कहा जाए तो पटेल को उनका प्रबल विनयानुशासन कहा जा सकता है. हालांकि सरदार पटेल में भी कुछ त्रुटियाँ थीं, किन्तु उनकी रचनात्मक सफलता ने उन्हें इतिहास में अमर बना दिया किसी मित्र के आड़े समय में काम आने के लिए वह अपने को वचनबद्ध मानते थे
15 दिसम्बर, 1950 को प्रातःकाल 9.37 पर इस महापुरुष का 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया, जिसकी क्षतिपूर्ति होना दुष्कर है. यह भी सच है कि गांधी ने कांग्रेस में प्राणों का संचार किया/तो नेहरू ने उस कल्पना और दृष्टिकोण को विस्तृत आयाम दिया डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से उसको आचरण मिला था और सरोजिनी नायडू ने कांग्रेस को आभा प्रदान की थी लेकिन इसके साथ जा शक्ति और सम्पूर्णता काँग्रेस को प्राप्त हुई वह सरदार पटेल की कार्यक्षमता का ही परिणाम था लौह पुरुष सरदार पटेल की राष्ट्र के प्रति की गई सेवाओं का भारतीय जन-मानस पर अमिट प्रभाव है |
भारत के राज्यों का एकीकरण: 562 रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित करना।
सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण: भारतीय संस्कृति के पुनरोद्धार के प्रतीक।
प्रभावशाली गृहमंत्री: 1946 की अस्थाई सरकार में गृहमंत्री के रूप में सेवा दी।
किन परेशानियों के बावजूद सरदार पटेल ने 562 रियासतों को एकजुट किया?
क्षेत्रीय विभाजन: भारत की रियासतें अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओं से बटी थीं।
राजाओं का विरोध: कई शासक अपनी रियासतों की स्वतंत्रता बनाए रखना चाहते थे।
सामाजिक और धार्मिक बाधाएँ: धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं ने इसे और कठिन बना दिया।
इन बाधाओं के बावजूद, सरदार पटेल की कुशल रणनीति और मजबूत नेतृत्व ने इसे संभव बनाया।
यदि सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते, तो शायद भारत का विभाजन कम हिंसक होता और राष्ट्रीय सुरक्षा व एकीकरण के मुद्दों पर अधिक मजबूती से काम होता। उनकी दूरदर्शिता और दृढ़ता देश के लिए नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर सकती थी। हालांकि, उन्होंने गृह मंत्री के रूप में भी अद्वितीय योगदान दिया।
सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने के लिए कांग्रेस पार्टी के कई सदस्यों का समर्थन था, लेकिन महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू को चुना। गांधीजी का मानना था कि नेहरू अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए बेहतर विकल्प होंगे। इस फैसले के बावजूद, पटेल ने नेहरू के साथ मिलकर काम किया और अपनी जिम्मेदारियों को कुशलता से निभाया।
सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन प्रेरणा से भरा हुआ है। वे सिर्फ एक नेता ही नहीं, बल्कि भारत के एक महान शिल्पकार थे। उनका नाम भारतीय इतिहास में अमिट है, और उनकी सेवाएँ हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी।
सरदार पटेल को "लौह पुरुष" कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति, दृढ़ता और नेतृत्व कौशल से भारत के 562 रियासतों को एकजुट किया। उनकी साहसिकता और अटल संकल्प ने भारत के एकीकरण को संभव बनाया।
स्वतंत्रता के बाद भारत 562 छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। पटेल ने इन रियासतों के शासकों से बातचीत की और उन्हें भारतीय संघ में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। हैदराबाद और जूनागढ़ जैसे कठिन मामलों में, उन्होंने राजनीतिक कुशलता और सूझबूझ से बिना अधिक खून-खराबे के इन रियासतों को भारत में शामिल किया।
15 दिसंबर 1950 को इस महान नेता का निधन हुआ। सरदार पटेल की विरासत भारत के इतिहास में अमिट है।
सरदार वल्लभभाई पटेल को "लौह पुरुष" क्यों कहा जाता है? उन्हें "लौह पुरुष" इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारत के राज्यों को एकजुट करने में अदम्य साहस और दृढ़ता दिखाई।
सरदार पटेल का जन्म कब और कहाँ हुआ? उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ।
सरदार पटेल ने कौन-कौन से प्रमुख कार्य किए? 562 रियासतों का विलय, सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण, और गृहमंत्री के रूप में सेवा।
वे किस स्वतंत्रता संग्राम के नेता से प्रेरित थे? वे महात्मा गांधी से गहराई से प्रभावित थे।
सरदार पटेल के शिक्षा क्षेत्र में क्या योगदान रहा? उन्होंने न्याय के लिए संघर्ष करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की दिशा में कदम उठाए।
उनका सबसे बड़ा राजनीतिक योगदान क्या था? भारत को एकीकृत करना और विभाजन के बाद शांति स्थापित करना।
सरदार पटेल का दृष्टिकोण किस प्रकार का था? उनका दृष्टिकोण व्यावहारिक, स्पष्ट और दूरदर्शी था।
वे गृहमंत्री कब बने? 1946 की अस्थाई राष्ट्रीय सरकार में।
सरदार पटेल की मृत्यु कब हुई? उनका निधन 15 दिसंबर 1950 को हुआ।
सरदार पटेल की विरासत को कैसे याद किया जाता है? उनकी विरासत को "स्टेच्यू ऑफ यूनिटी" के माध्यम से और भारतीय एकता में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है।
Note: This article is for Education purpose and reverence has been taken from different sources including upkar publications.
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