Sat , Jul 26 2025
शीर्षक: "वोट बैंक की राजनीति बनाम जनहित: कब्रिस्तान-श्मशान और उपेक्षित विद्यालय-अस्पताल टूटी हुई सड़कें"
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी होती है कि वे जनता के पैसों का उपयोग जनहित में करें। लेकिन अफसोस की बात है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी देश के कई हिस्सों में नेता वोट बैंक के लालच में ऐसे फैसले लेते रहे हैं, जो केवल एक समुदाय या एक खास वर्ग को खुश करने के लिए होते हैं—चाहे वह कब्रिस्तान की बाउंड्री हो, श्मशान के सौंदर्यीकरण के नाम पर फंड हो, या फिर अन्य धार्मिक पहचान आधारित ढांचे।
यह बात तब और ज्यादा चिंताजनक हो जाती है जब ये फंड तो समय पर जारी होते हैं, लेकिन उसी गांव या इलाके के स्कूलों की छतें गिरती रहती हैं, अस्पतालों में डॉक्टर नहीं होते, और बच्चों की जानें खराब भवनों के कारण चली जाती हैं।
टूटी हुई सड़कों के कारण दुर्घटनाओं के रिकॉर्ड में लगातार वृद्धि होती रहती है। *क्या यही है जनप्रतिनिधित्व का असली चेहरा?*
1 जनता का पैसा, जनता की भलाई में लगे
हर साल सरकार करोड़ों-अरबों रुपये बजट में विभिन्न योजनाओं के लिए रखती है। ये पैसा दरअसल जनता के टैक्स का पैसा होता है। इसका उद्देश्य होता है—सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें, पेयजल, और बुनियादी सेवाएं। लेकिन जब ये पैसा केवल धार्मिक स्थलों या समुदाय विशेष को खुश करने वाले कामों में खर्च होता है, तो यह सीधे-सीधे जनहित की अवहेलना होती है।
2. कब्रिस्तान-श्मशान बनाम विद्यालय-अस्पताल टूटी हुई सड़कों
कब्रिस्तान या श्मशान की ज़रूरत से कोई इनकार नहीं कर सकता। पर क्या यह प्राथमिकता होनी चाहिए, जब स्कूल की छत के गिरने से बच्चे मर जाते है, या अस्पताल में ऑक्सीजन न मिलने से किसी की जान चली जाती है?
इन मुद्दों पर आँखें मूंद लेना केवल प्रशासन की ही नहीं, पूरे तंत्र की विफलता है।
3. क्या ऐसे नेताओं पर मुकदमा नहीं चलना चाहिए?
जब किसी निर्माण कार्य की लापरवाही से किसी नागरिक की मृत्यु होती है, तो इंजीनियर से लेकर ठेकेदार तक के खिलाफ FIR होती है ।
तो क्या वो नेता, जिनकी सदिच्छा और प्राथमिकता की कमी के चलते स्कूल-अस्पताल गिरते हैं, जवाबदेह नहीं होने चाहिए?
कानून सबके लिए समान है, तो फिर ऐसे *नेताओं के खिलाफ जनहित में मुकदमे क्यों नहीं चलने चाहिए, जिनकी नीतियां जनजीवन के लिए हानिकारक साबित हुईं?*
4. समाधान क्या हो?
नीति निर्धारण में प्राथमिकता शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे को मिले।
पब्लिक ऑडिट हो, जिसमें फंड के उपयोग का विवरण सार्वजनिक किया जाए।
जन प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय हो, और लापरवाही पर कार्रवाई हो।
जनता को भी जागरूक होना होगा और अगली बार वोट डालते वक्त मंदिर-कब्रिस्तान नहीं, बल्कि स्कूल-अस्पताल टुटी हुई सड़कों का पूछना होगा।
निष्कर्ष:
नेता जब वोट बैंक के लालच में निर्णय लेते हैं, तो नुकसान सिर्फ एक वर्ग का नहीं, बल्कि पूरे समाज का होता है। हमें यह तय करना होगा कि राजनीति धर्म के नाम पर होनी चाहिए या विकास के नाम पर। और *जिन जनप्रतिनिधियों ने अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ा है, उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की मांग करना हर जागरूक नागरिक का कर्तव्य है।
👉 याद रखिए, अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी अगर हमने आज आवाज नहीं उठाई।
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