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मंत्र पुष्पांजलि का सही अर्थ समझे |

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Tue , May 06 2025

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आपने देखा होगा आरती करने के बाद एक मन्त्रपुष्पांजली गायी जाती है। संस्कृत में होने के कारण अधिकांश लोग उसका अर्थ समझ नहीं पाते और मन्त्रपुष्पांजली को भी धार्मिक मंत्रपठन मान बैठते है। मन्त्रपुष्पांजली का असली अर्थ जानेंगे तो चकित रह जाएंगे। 



यह मंत्रपुष्पांजली एक राष्ट्रगीत है, विश्वप्रार्थना है। उसमें राष्ट्रीय एकात्म जीवन की आकांक्षा है। हमारे ज्ञानी ऋषिमुनियों ने बहुत सोच समझकर मन्त्रपुष्पंजली गाने का संस्कार किया है। इस मन्त्रपुष्पांजली का अर्थ सामान्य जनों तक पहुँचे यह इस लेख का प्रायोजन है।


मंत्रपुष्पांजली में कुल चार श्लोक है। 


श्लोक १ : यज्ञेन यज्ञं अयजन्त देवाः तानि धर्माणि         प्रथामानि आसन् 

तेह नांक महिमानः सचन्तयत्र पूर्वे साध्याःसंति देव:


श्लोक का अर्थ - देवों ने यज्ञ के द्वारा यज्ञरुप प्रजापती का पूजन किया। यज्ञ और तत्सम उपासना के वे प्रारंभिक धर्मविधि थे। जहां पहले देवता निवास करते थे (स्वर्गलोक में) वह स्थान यज्ञाचरण द्वारा प्राप्त करके साधक महानता (गौरव) प्राप्त करते है।


श्लोक २ : ओम राजाधिराजाय प्रसह्यसाहिने। नमोवयं वैश्रवणाय कुर्महे। स मे कामान् कामाकामाय मह्यं। कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय/ महाराजाय नमः 


श्लोक का अर्थ - हमारे लिए सब कुछ अनुकुल करने वाले राजाधिराज वैश्रवण कुबेर को हम वंदन करते है।  वो कामनेश्वर कुबेर मुझ कामनार्थी की सारी कामनाओं को पूर्ती प्रदान करें!  


श्लोक ३ : ओम स्वस्ति। साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं।


श्लोक का अर्थ - हमारा राज्य सर्व कल्याणकारी राज्य हो। हमारा राज्य सर्व उपभोग्य वस्तुओं से परिपूर्ण हो। यहां लोकराज्य हो। हमारा राज्य आसक्तिरहित, लोभरहित हो। ऐसे परमश्रेष्ठ महाराज्य पर हमारी अधिसत्ता हो।


श्लोक ३ : समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात्। पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकरा‌ळ इति। 


श्लोक का अर्थ - हमारा राज्य क्षितिज की सीमा तक सुरक्षित रहें। समुद्र तक फैली पृथ्वी पर हमारा दीर्घायु अखंड राज्य हो। हमारा राज्य सृष्टि के अंत तक सुरक्षित रहें!  


श्लोक ४ : तदप्येषः श्लोकोभिगीतो। मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति।।


श्लोक का अर्थ - इस कारण हेतु ऐसे राज्य के लिए और राज्य की कीर्ति गाने के लिए यह श्लोक गाया गया है।  अविक्षित के पुत्र मरुती,  जो राज्यसभा के सर्व सभासद है ऐसे मरुतगणों द्वारा परिवेष्टित किया गया यह राज्य हमें प्राप्त हो यहीं कामना!


संपूर्ण विश्व के कल्याण की, आकांक्षा और सामर्थ्य की सबको पहचान करवाने वाली यह विश्वप्रार्थना है। सर्व मतपंथियों के प्रति, सर्व मतपंथों की प्रगती के लिए सबको समान संधी होने वाले, सर्वहितकारी राज्य तभी संभव है जब संपूर्ण मानवजाती में  सहिष्णु समरस एकात्मता की भावना होगी।


ॐ नमों लक्ष्मी नारायणाय नम:

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