Wed , Jul 23 2025
माइक्रोसॉफ्ट ने 'वॉल्टेड डीप' नाम की कंपनी के साथ 14 हजार करोड़ रुपए में एक बड़ा समझौता किया है। इस डील के तहत, वॉल्टेड डीप अगले 12 सालों (2038 तक) में 49 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड को परमानेंटली हटाने का काम करेगी। इस तकनीक से कार्बन हटाने का एक्सपेक्टेड खर्च करीब ₹30 हजार प्रति टन आता है। यह काम बायो कचरे को जमीन की गहराई में स्टोर करके किया जाएगा।
इस कचरे में बायोसॉलिड्स (जो इंसानी मल का ठोस रूप होता है), जानवरों का गोबर (खाद), पेपर स्लज और खाने-पीने व खेती से बचा हुआ वेस्ट शामिल होगा। माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि इससे क्लाइमेट को तुरंत फायदा होगा। डेटा सेंटर से निकलने वाले भारी कार्बन को कम करने के लिए ऐसी प्रोजेक्ट बहुत जरूरी हैं। इसी समस्या से निपटने के लिए गूगल और अमेजन जैसी कई बड़ी कंपनियां भी ग्रीन एनर्जी सोर्स में इन्वेस्ट कर रही हैं।
वॉल्टेड डीप की यह टेक्नोलॉजी काफी अलग है। इसमें बायो वेस्ट को एक लिक्विड फॉर्म में जमीन से हजारों फीट नीचे, चट्टानी परतों में इंजेक्शन के जरिए स्टोर करती है। यह तरीका कार्बन को हमेशा के लिए हटाता है, मीथेन एमिशन को कम करता है, और खतरनाक गैस को हवा में फैलने से रोकता है। वॉल्टेड डीप इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल 2008 से कर रही है और अमेरिका के कई राज्यों में इसकी परमिशन है।
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