Thu , Jul 10 2025
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों द्वारा मामलों में राय देने या पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को तलब करने के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एक मामला शुरू किया है. कोर्ट यह जांच करेगा कि क्या उन्हें नोटिस दिया जा सकता है.इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ करेगी.
यह पीठ 14 जुलाई को जब ग्रीष्मावकाश के बाद अदालत फिर से खुलेगी, इस मामले पर सुनवाई करेगी. प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा कुछ वरिष्ठ वकीलों को तलब किए जाने की पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करने का निर्णय लिया है. मामले में ईडी ने वरिष्ठ वकीलों अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कुछ वरिष्ठ वकीलों को तलब किए जाने की पृष्ठभूमि में इस मामले पर सुनवाई करने का फैसला किया है. ईडी ने वरिष्ठ वकीलों अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किया था. हालांकि, बाद में केंद्रीय एजेंसी ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अपने मुवक्किलों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की जाँच में किसी भी वकील को समन जारी न करें.
पिछले महीने एक पत्र में केंद्रीय एजेंसी ने कहा था कि इस नियम में कोई भी अपवाद केवल उसके निदेशक की अनुमति के बाद ही किया जा सकता है. वकील ने केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड को रेलिगेयर एंटरप्राइजेज की पूर्व अध्यक्ष रश्मि सलूजा को दी गई कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व योजना पर कानूनी सलाह दी थी.
25 जून को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पुलिस या जांच एजेंसियों को मुवक्किलों को सलाह देने के लिए वकीलों को सीधे बुलाने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को कमजोर करेगा. जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष एक अलग मामला आया. पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है. सुप्रीम कोर्ट गुजरात के एक वकील की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, "जांच एजेंसियों/पुलिस को किसी मामले में पक्षकारों को सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकील या वकीलों को सीधे बुलाने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा भी होगा." पीठ ने इस मामले में कुछ सवाल भी तैयार किए.
पीठ ने पूछा, "जब कोई व्यक्ति किसी मामले से केवल पक्षकार को सलाह देने वाले वकील के रूप में जुड़ा हो, तो क्या जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस सीधे वकील को पूछताछ के लिए बुला सकती है?"दूसरा सवाल यह था, "यह मानते हुए कि जांच एजेंसी या अभियोजन एजेंसी या पुलिस के पास यह मामला है कि व्यक्ति की भूमिका केवल एक वकील के रूप में नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक है, तब भी, क्या उन्हें सीधे समन भेजने की अनुमति दी जानी चाहिए या क्या उन असाधारण मानदंडों के लिए न्यायिक निगरानी निर्धारित की जानी चाहिए?"
पीठ ने कहा कि इन सवालों का व्यापक आधार पर समाधान आवश्यक है क्योंकि जो दांव पर लगा है वह है न्याय प्रशासन की प्रभावशीलता और वकीलों की कर्तव्यनिष्ठा से, और उससे भी महत्वपूर्ण, निडरता से अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन करने की क्षमता.
पीठ ने कहा कि किसी प्रोफेशनल को जब वह मामले में वकील हो, अधीन करना प्रथम दृष्टया अस्वीकार्य प्रतीत होता है और न्यायालय द्वारा आगे विचार किया जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि वकीलों को कानूनी पेशेवर होने के नाते और वैधानिक प्रावधानों के परिणामस्वरूप कुछ अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त हैं और उन्होंने अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, एससीबीए औरएससीएओआरए के अध्यक्षों से सहायता मांगी.
पीठ ने उचित निर्देश पारित करने के लिए मामले के कागजात मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा. बता दें कि वकीलों के संघों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई से मामले का स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह किया था.
Leave a Reply